बुधवार, 31 जुलाई 2019

ऑनलाइन गेम एप्स किस ओर ले जा रहे बच्चों और युवाओं के मन को?

ऑनलाइन गेम एप्स किस ओर ले जा रहे बच्चों और युवाओं के मन को?

  जैसे तैसे हमने ब्लू व्हेल गेम जैसे दैत्य से निजात पाई थी तो अब वही दैत्य पबजी और हागो जैसे गेम एप्स का रूप रखकर सामने आ गया है | जहाँ ब्लू व्हेल गेम यूजर्स को शारीरिक रूप से खत्म कर रहे थे तो वहीं अब ये नये ऑनलाइन मोबाइल गेम एप्स लोगों को मानसिक रूप से खत्म कर रहे हैं |

ऑनलाइन गेम एप्स दिन प्रतिदिन घातक होते जा रहे हैं, युवा पीढ़ी इन गेम्स की बुरी लत में फंसकर दुनियादारी से बेखबर हो रही है और समाज से टूटती जा रही है | इन गेम्स में डूबे रहने के कारण किसी की तबीयत बिगड़ रही है तो किसी की भूख मिट रही है। पढ़ाई, लिखाई और घर परिवार तथा समाज से दूर हेडफोन पर बुदबुदाते हुए मोबाइल और एक गेम प्लेयर। इन ऑनलाइन गेम्स एप्स से युवा और बच्चे अपनों से दूर हो रहे हैं, समाज से दूर हो रहे हैं और भावनाओं से हीन हो रहे हैं, मस्तिष्क में आक्रामकता भरती जा रही है | अब तो इस कारण घर के सदस्य पहले की तरह एक साथ बैठकर खाना खाते भी नज़र नहीं आते | वास्तविकता से दूर ये लोग घर के वयोवृद्धों के अनुभवपूर्ण संग से दूर हो रहे हैं | उनकी ज़िंदगी में कोई अपना दखल नहीं दे, सिवाय एक दूर दराज के अनजान ऑनलाइन पार्टनर के और फिर गेम शुरू। इन युवा और बच्चों को दूर दराज के अनजान ऑनलाइन प्लेयर्स के साथ खेलने में तो रुचि है लेकिन आसपास मौजूद अपनों से कोई लेना देना नहीं | रिश्तों में दूरियाँ बढ़ रही हैं | सामाजिकता, संस्कारों और नैतिक मूल्यों का पतन होता जा रहा है | बच्चों और युवाओं की बोली में झल्लाहट बढ़ रही है | ऑनलाइन गेम्स खेलने वालों को नींद भी नहीं प्रभावित कर पा रही है, जिस कारण युवा और बच्चे नींद पूरी न होने से मानसिक अवसाद के साथ साथ अनेक बीमारियों की चपेट में भी आरहे हैं । जो जहां है वहीं से इस गेम को ऑनलाइन खेल रहा है और वक्त बर्बाद कर रहा है। आज के बच्चे वास्तविक लूडो और साँप सीढ़ी खेलने की वजाय इनको मोबाइल पर खेल रहे हैं जिससे मनोवैज्ञानिक रूप से वास्तविक दुनिया और वास्तविकता से दूर हो रहे हैं |

   हागो (HAGO)जैसे गेम एप्स और अज़र जैसे एप तो ऑनलाइन डेटिंग भी बढ़ा रहे हैं | हागो जैसे गेम एप के ज़रिये तो बदमाश या हैकर लड़के अपने साथ गेम खेल रही लड़कियों का नम्बर लेकर या लोकेशन ट्रैस करके लड़कियों को अपने जाल में फँसा रहे हैं, जो बस इसी जुगत में बैठे रहते हैं, जिससे अभिभावक अनभिज्ञ हैं और यही समस्या बाद में बड़ी बन जाती है | ये ऑनलाइन गेम्स खेलने वाले युवा दूर दराज शहरों या देश विदेश में बैठे अनजान लड़के लड़कियों के संपर्क में आकर अपना भविष्य तो खराब कर ही रहे हैं, साथ ही साथ असामाजिक तत्त्वों का शिकार भी हो रहे हैं | इन गेम्स में रमे रहने वाले प्लेयर्स के अभिभावक भी चिंतित हैं, युवाओं और बच्चों पर इन गेम्स का बुरा असर इस कदर हावी है कि वे समझाने वाले अभिभावकों को भी कड़वे जवाब दे रहे हैं |

    महाराष्ट्र में बेखबर होकर ट्रेन की पटरी पर पबजी गेम खेल रहे दो युवकों की मौत के बाद वहां इस खेल पर बैन लगाने की मांग उठी। मध्यप्रदेश में पबजी गेम के चक्कर में एक युवक ने तो पानी की जगह एसिड ही पी लिया, जिससे उसकी मौत हो गई। इन घटनाओं के बाद इस गेम पर पाबंदी लगाने की मांग बढ़ गई है। कुछ राज्यों में इन गेम्स पर बैन लगा भी दिया गया है।

  आज के युवा और बच्चे बड़ी तेजी से इन गेम्स के इन एप्स का शिकार हो रहे हैं। इन गेम्स को खेलने के कारण बच्चों की आंखों और दिमाग पर बुरा असर पड़ रहा है। युवा और बच्चे पूरी तरह एकाग्रचित्त होकर इस गेम को खेलते हैं। मोबाइल के स्क्रीन पर उनकी आंखें टिकी रहती हैं, जिसके कारण उनके ड्राई हो जाने का खतरा है, साथ ही इसके कई और दुष्परिणाम भी हो सकते हैं। | प्रयास तो यह होना चाहिए कि हम इस दैत्य से बच पायें लेकिन आज यदि इनका समाधान निकाल भी लेंगे तो कल यही दैत्य फिर किसी ऑनलाइन रूप में हमारे सामने प्रकट हो जायेगा | आवश्यकता है कि अभिभावक ही इस ओर ध्यान दें |




शिवम् सिंह सिसौदिया,
ग्वालियर, मध्यप्रदेश

रविवार, 18 मार्च 2018

*सभ्य कौन?*


ईश्वर ने इस सृष्टि में मनुष्य योनि को सबसे अधिक समझदार और होशियार बनाया है | अन्य जीव मनुष्य की तुलना में अल्पविकसित हैं | उनको समझ नहीं कि कौन सा कार्य किस प्रकार किया जाये | किंतु अपने जीवन में कुछ घटनाओं और व्यवहारों को देखकर मैने जाना कि इंसान ने ईश्वर के द्वारा दिये गये अनमोल तोहफ़े यानि समझदारी को त्याग दिया है जबकि अन्य पशु-पक्षियों में कई हद तक समझदारी देखी जा सकती है |

      आज मनुष्य जाति में विश्वास नहीं रहा, आपसी रिश्तों में समझदारी नहीं रही, जिसका श्रेय भी मनुष्य को ही जाता है | एक बार प्यार का व्यवहार करने पर कुत्ते जैसा जीव भी वफादारी निभाता है लेकिन आज के समय में मनुष्य का भरोसा नहीं, लाख प्यार देने के बाद भी वह धोखा दे सकता है | एक जीव आपकी मनोभावनाओं को अच्छे से समझ सकता है, लेकिन एक इंसान नहीं | किसी को अपशब्द बोलते समय कुत्ते शब्द का प्रयोग करना उस व्यक्ति का अपमान नहीं बल्कि वफादार प्राणी कुत्ते का अपमान है, क्योंकि कुत्ता तो प्यार निभाता है जबकि इंसान प्यार के बदले गला घोंटता है |

जानवरों को भी रहने का सलीका और सभ्यता होती है, उनके अन्दर भी भावनाएँ होती हैं लेकिन इस डिग्रीधारी, पढ़ी-लिखी, सुन्दर पोशाकधारी जाति के पास नहीं| आज चीटियों, ऊँटों या किसी भी जीव को देख लें तो वो कतार में अपने समाज के साथ चलता दिखाई देगा लेकिन मानव तो अपने समाज के साथ शत्रुवत व्यवहार करता है| इंसान टिकट की लाइन में सुकून और तहज़ीब से खड़ा नहीं होता | बस, रेल, फुटपाथ, सिनेमा, कतार सभी जगह गाली-गलौज करता है | यह है मानव की सभ्यता? इससे बेहतर तो पशु हैं|

    आज हम सबको अपने अपने काम और अपने अपने फायदे से मतलब है, लेकिन चींटी जैसे छोटे जीव को देखिए, किसी भी भार को सब मिलकर उठाते हैं | ऐसे ही अगर हम मनुष्य भी ज़िन्दगी में किसी भी परेशानी के भार को मिलकर उठाएँ तो हम लोगों के जीवन कितने हल्के हो जाएँ |

     हम किसी धोखेबाज व्यक्ति को आस्तीन का साँप बोलते हैं लेकिन मनुष्य से बड़ा धोखेबाज कोई प्राणी नहीं | बेचारा साँप भी बिना परेशान किए या बिना भय की आशंका के नहीं डसता | लेकिन यहाँ तो इंसान हर घड़ी एक दूसरे के लिए ज़हर उगल रहा है, जो उसको प्यार कर रहे हैं उन्हीं को डस रहा है |

       मैने देखा एक कार तेज़ रफ्तार में दौड़ रही थी और उसके पीछे एक कुत्ता दौड़ रहा था | दोनों ही दौड़ रहे हैं, जानवर भी और इंसान भी | बस अंतर इतना है कि एक पैदल दौड़ रहा है और एक गाड़ी में बैठकर | वह बेचारा पेट भरने के लिए | मनुष्य ने स्वयं को इतना विकसित करके पाया भी क्या? बस धन की भूख? ऐसी भूख जिसने इंसान की आँखों पर मतलबपरस्ती का पर्दा डाल दिया, जिसके कारण आज उसे किसी की भावनाएं और आत्मसम्मान भी नहीं दिखता |

      एक मृत्युभोज में देखा- भोजन बनाने के लिए लकड़ी फाड़ी गईं रोकर, पूड़ियों के लिए आटा गूँथा गया रोकर, पूड़ियाँ बनाई गईं रोकर, सब्जी काटी गई रोकर, सब्जी बनाई गई रोकर क्योंकि उस परिवार का प्रियजन बिछुड़ गया है सदा के लिए | यानी हर कृत्य आँसुओं से भीगा है | महाभारत ग्रन्थ में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी कहते हैं कि "यदि खिलाने वाला दुःखी हो, विपत्ति में हो, वहाँ भोजन ना करें | उस जगह भोजन करने से आयु और तेज घटता है |" जानवर भी दुःख का एहसास करते हैं, जिस दिन जिस जानवर का साथी बिछुड़ जाता है वह उस पूरे दिन चारा नहीं खाता | लेकिन देखो समझदार मनुष्य को एक व्यक्ति की मृत्यु पर हलवा पूड़ी खाकर शोक मनाता है | इससे बढ़कर निन्दनीय क्या है?

     देखो जानवर भी ईश्वर की सीख को मानते हैं लेकिन हम इंसान नहीं मानते | मुझे तो लगता है कि जानवर भी समर्थ या थोड़े और समझदार होते तो वे भी पूरे और शालीन वस्त्र पहनते, लेकिन इंसान को कौन समझाए? अब बताइये सभ्य कौन, अल्पविकसित होने के बावजूद भी प्रेम व भावनाओं की कद्र करने वाले वे चार पैर के जीव या किसी के प्रेम और भावनाओं को आहत करने वाला दो पैर का जीव?
       
       *शिवम सिंह सिसौदिया, ग्वालियर*